अपरिवर्तनीय,
चेतन व अद्वैत आत्मा का चिंतन करें और 'मैं' के भ्रम रूपी आभास से मुक्त
होकर, बाह्य विश्व की अपने अन्दर ही भावना करें समय से आप 'मैं शरीर हूँ'
इस भाव बंधन से बंधे हैं, स्वयं को अनुभव कर, ज्ञान रूपी तलवार से इस बंधन
को काटकर सुखी हो जाएँ आप असंग, अक्रिय, स्वयं-प्रकाशवान तथा
सर्वथा-दोषमुक्त हैं। आपका ध्यान द्वारा मस्तिस्क को शांत रखने का प्रयत्न
ही बंधन है।
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